पिछली पोस्ट में हमने इक्विटी के बारे में विस्तार से जाना था आज हम आपको इक्विटी कैपिटल (Equity Capital) को उदाहरण के साथ समझाएंगे तो आइए जानते हैं-
इक्विटी कैपिटल क्या है? What Is Equity Capital In Hindi?
कंपनियों को अपना बिजनेस बड़ा करने के लिए फंडिंग की जरूरत होती है और इसी फंडिंग को हम कैपिटल या पूंजी भी कहते हैं। जब कंपनी अपने शेयर को बेचकर निवेशकों से कैपिटल इकट्ठा करती है तो उसे ‘इक्विटी कैपिटल‘ कहते हैं।
आमतौर पर इक्विटी कैपिटल को शेयर कैपिटल या Residual Capital भी बोला जाता है। कंपनी की बैलेंस शीट में इसे शेयरहोल्डर फंड वाले सेक्शन में दिखाया जाता है.
ज्यादातर इक्विटी कैपिटल को किसी भी बिजनेस के शुरुआती दौर में निवेशकों से इकट्ठा किया जाता है इसलिए यह बिजनेस की मुख्य फंडिंग होती है.
आपको पता होगा कोई भी बिजनेस दो तरह से फंडिंग के लिए पैसा इकट्ठा करता है
- डेट फाइनेंसिंग के जरिए और
- इक्विटी के जरिए।
डेट फंडिंग में बैंक या अन्य फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस फंडिंग देते हैं जिस पर कंपनी को ब्याज देना पड़ता है जबकि इक्विटी में कंपनी अपने शेयर्स इक्विटी मार्केट लोगों को बेचती है जिसके बदले में निवेशक कंपनी में पैसा लगाते हैं।
इक्विटी कैपिटल रिस्की क्यों है?
इक्विटी कैपिटल क्यों रिस्की है, इसे समझने के लिए पहले आपको इसकी परिभाषा (Definition of Equity capital in hindi) को समझना जरूरी है जिसके अनुसार-
“इक्विटी कैपिटल वह राशि है जो उस समय शेयरहोल्डर को लौटा दी जाएगी जब कंपनी के सारे एसेट लिक्विडेट हो जाते हैं और कंपनी के द्वारा लायबिलिटी और सभी बकाया कर्ज़ों का भुगतान कर दिया जाता है।”
एसेट लिक्विडेट होने का मतलब है कि जब कंपनी बंद होती है यानी दिवालिया (Bankrupt) हो जाती है तो ऐसे में जिन लोगों का या बैंक का पैसा कंपनी में लगा होता है उनके द्वारा कंपनी के सारे एसेट को एक-एक करके बेच दिया जाता है इसे ही एसेट लिक्विडेशन कहते हैं.
एसेट लिक्विडेशन में एसेट को बेचकर सबसे पहले कंपनी के ऊपर बकाया सारे कर्ज़ों (debt) को चुकाया जाता है इसके बाद प्रिपेयर्ड शेयर होल्डर को उनका पैसा लौटाया जाता है फिर उसके बाद जो पैसा बचता है उसे इक्विटी शेयर होल्डर के बीच में बाटा जाता है
इसका मतलब है कि जिन लोगों ने इक्विटी कैपिटल कंपनी में निवेश की होती है उन्हें कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति में सबसे बाद में पैसा मिलता है और कई बार तो पैसा मिलता ही नहीं है क्योंकि इक्विटी शेयर होल्डर तक आते आते ही कंपनी के सारे एसेट नीलाम हो चुके होते हैं।
इसीलिए इक्विटी कैपिटल को सबसे ज्यादा रिस्की माना जाता है क्योंकि अगर कंपनी डूब जाती है तो इक्विटी निवेशकों को पैसा सबसे बाद में लौटाया जाता है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि कंपनी की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है उसके क्रेडिटर यानी देनदारों का पैसा लौटाना।
लेकिन अब सवाल आता है कि आखिर जब इक्विटी कैपिटल में इतना ज्यादा रिस्क है तो निवेशक इक्विटी में पैसा निवेश क्यों करते हैं?
इक्विटी कैपिटल में रिस्क होने के बावजूद निवेशक इक्विटी शेयर में पैसा क्यों लगाते हैं?
इसके 3 कारण है-
- Ownership: जो निवेशक इक्विटी में पैसा लगाता है उसे कंपनी में हिस्सेदारी मिलती है और अगर आपके पास पर्याप्त इक्विटी शेयर मौजूद हैं तो आपको कंपनी के डायरेक्टर्स को चुनने के लिए वोटिंग अधिकार (Voting Rights) मिलते हैं. जबकि अगर आप बांड या डेट फंड में निवेश करते हैं तो आपको ओनरशिप नहीं मिलती है.
- Dividend: अगर आप इक्विटी शेयर में लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं तो आपको अपनी कैपिटल पर हर साल डिविडेंड मिलता है. डिविडेंड वो पैसा होता है जो कंपनी अपने शेयर होल्डर को अपने नेट प्रॉफिट में से हर साल बोनस के तौर पर देती है.
- Share price growth: जैसे-जैसे कंपनी का बिजनेस बढ़ता है और कंपनी प्रॉफिट कमाती है तो इसका शेयर प्राइस भी बढ़ने लगता है। शेयर प्राइस के बढ़ने से सबसे ज्यादा फायदा इक्विटी शेयरहोल्डर को ही होता है क्योंकि ज्यादातर शेयर होल्डर केबल शेयर प्राइस के बढ़ने से ही पैसा कमाते हैं जिसमें प्रमोटर्स, इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स और रिटेल निवेशक शामिल होते हैं। इनका ज्यादातर फोकस स्टॉक के प्राइस पर ही होता है।
तो अब आप समझ चुके होंगे कि भले ही इक्विटी कैपिटल में रिस्क है लेकिन फिर भी इक्विटी शेयर होल्डर इसमें अपना पैसा लगाते हैं क्योंकि उन्हें बिजनेस पर कंट्रोल, डिविडेंड और शेयर प्राइस ग्रोथ जैसे लाभ प्राप्त होते हैं जो उन्हें किसी अन्य इन्वेस्टमेंट में नहीं मिलते हैं।
इक्विटी कैपिटल कितने प्रकार की होती है?
इक्विटी कैपिटल या शेयर कैपिटल 5 प्रकार की होती है-
1. Authorized Capital: ये वह मैक्सिमम कैपिटल होती है जिस से ज्यादा की राशि कंपनी अपने पूरे जीवन काल में इस्तेमाल नहीं कर सकती है। और अगर वह करना चाहती है तो उसे सरकार की अनुमति लेनी होगी और शेयर होल्डर की परमिशन की जरूरत पड़ेगी जिसमें काफी तामझाम होते हैं.
2. Issued or Unissued Capital: कंपनी जितनी राशि के शेयर निवेशकों के लिए जारी करती है उस राशि को Issued capital कहते हैं और जो शेयर बाकी बच जाते हैं उनकी वैल्यू को Unissued Capital कहा जाता है।
3. Subscribed or Unsubscribed Capital: कंपनी जितने शेयर जारी करती हैं तो जरूरी नहीं होता कि और वैसे पूरे शेयर ही बिक जाए तो जितना शेयर लोग खरीदते हैं और उससे जो पैसा मिलता है उसे Subscribed capital कहते हैं और बाकी बचे हुए शेयर की राशि को Unsubscribed Capital माना जाता है।
4. Called up or Uncalled Capital: वैसे तो आजकल हर कंपनी IPO लाते हैं जितने शेयर जारी कर दी है उसका सारा पैसा पब्लिक से मंगवा लेती है लेकिन कुछ कंपनियां अलग-अलग हिस्सों में पैसा मंगवाती हैं जैसे- कुछ पैसा आईपीओ अप्लाई करते वक्त, कुछ पैसा जमा करते वक्त, फिर उसके बाद कुछ पैसा फर्स्ट कॉल और लास्ट कॉल पर मंगवाती हैं तो कंपनी जो यह पैसा मंगवा दी है उसे ही Called up capital कहा जाता है और बाकी बचे हुए अमाउंट को Uncalled Capital कहते हैं।
5. Paid-up or Unpaid Capital: कंपनी जितना Called up capital पब्लिक से मंगवाती है अगर उसे वह पूरा पैसा मिल जाता है तो Called up capital को ही paid-up capital बोला जाता है लेकिन कई बार कंपनी को पूरा पैसा नहीं मिलता है इस स्थिति में called up capital में से जो पैसा कंपनी को मिलता है उसे paid-up capital कहते हैं और जो पैसा कंपनी को नहीं मिलता है उसे Unpaid Capital कहा जाता है।
इक्विटी कैपिटल का उदाहरण
आपको पता होगा ज्यादातर बिजनेस इंडिया में केवल इसीलिए फेल होते हैं क्योंकि या तो वह कर्ज (debt) ज्यादा ले लेते हैं और उसे चुका नहीं पाते या फिर उन्हें फंडिंग नहीं मिलती है जिससे वह प्रॉफिट नहीं कमा पाते हैं और आखिरकार उन्हें कंपनी बंद करनी पड़ती है।
अगर कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है और उसे फंडिंग चाहिए होती है तो वह किसी प्राइवेट इक्विटी फर्म की तलाश करती है जो उसे शेयर के बदले फंडिंग दे दे।
इसके अलावा कंपनी आईपीओ ला सकती है और अपनी कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट करके अपने शेयर पब्लिक को ऑफर करती है और फिर लोग उस कंपनी के शेयर को खरीदते हैं जहां से वो कंपनी पैसा इकट्ठा करती है और इसी पैसे को इक्विटी कैपिटल कहते हैं।
कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट करना और अपने शेयर पब्लिक को ऑफर करने की पूरी प्रक्रिया प्राइमरी मार्केट में संपन्न होती है और इसके बाद की प्रोसेस सेकेंडरी मार्केट में होती है जिसमें कंपनी के शेयर प्राइस ऊपर-नीचे होते रहते हैं जिसके कारण कंपनी की मार्केट कैपिटलाइजेशन कम या ज्यादा होती रहती है।
आइए इक्विटी कैपिटल का एक उदाहरण देखते हैं-
मान लीजिए आप 10 लाख रुपये से एक कंपनी खोलना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले ROE (रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी) के पास जाना होगा जो आपको MOA (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) सर्टिफिकेट बनवाने के लिए बोलेगी जिस पर ऑथराइज्ड कैपिटल (Authorized capital) लिखी होती है
तो जब आप MOA सर्टिफिकेट बनवाएंगे तो उस पर Authorized capital में 10 लाख रुपए लिखे जाएंगे इसका मतलब है कि आप कंपनी में 10 लाख रुपये से ज्यादा के शेयर जारी नहीं कर सकते।
इसके बाद आप इस MOA सर्टिफिकेट को लेकर ROE के पास जाएंगे तो आपको अप्रूवल मिल जाएगा और आप आप 10 लाख रुपये के शेयर कंपनी में जारी कर सकते हैं
लेकिन शेयर को जारी करने से पहले आपको उस शेयर की फेस वैल्यू पता होना जरूरी है
इसीलिए सबसे पहले उस कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू डिसाइड की जाती है ज्यादातर कंपनियों के शेयर की फेस वैल्यू 1, 2, 5 या 10 होती है।
मान लीजिए ABC कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू ₹10 है तो आप 1 लाख से ज्यादा शेयर जारी नहीं कर सकते हैं क्योंकि आपकी ऑथराइज्ड कैपिटल 10 लाख रुपये है
इस प्रकार: ₹10 फेस वैल्यू × 1 लाख शेयर = 10 लाख रुपये।
अब यदि आपको लगता है कि अभी कंपनी चलाने के लिए केवल 5 लाख रुपये की ही जरूरत है तो आप केवल 50 हजार शेयर ही जारी कर सकते हैं और बाकी बचे 50 हजार शेयर भविष्य में जरूरत पड़ने पर जारी कर सकते हैं क्योंकि टोटल 1 लाख शेयर ही थे।
तो अगर आप 50,000 शेयर के बदले ₹500000 अपनी कंपनी में लगाते हैं तो इस पैसे को “इक्विटी कैपिटल” कहा जाता है और आप इक्विटी स्टॉकहोल्डर या शेयरहोल्डर बन जाते हैं।
इसी प्रकार जब 10, 20, 50 या उससे भी ज्यादा लोगों के बीच 50,000 शेयर को खरीदने के लिए ऑफर किया जाता है और जब वह लोग अलग-अलग संख्या में शेयर को खरीदते हैं तो वह कंपनी के इक्विटी शेयर होल्डर बन जाते हैं और उनके द्वारा कंपनी में निवेश किया हुआ पैसा इक्विटी कैपिटल कहलाता है।
FAQ’S Related to Equity Capital In Hindi
इक्विटी कैपिटल और डेट कैपिटल में क्या अंतर है?
डेट कैपिटल में कंपनियां लोन के द्वारा पैसे जुटाती हैं जिस पर उन्हें ब्याज देना पड़ता है और जबकि इक्विटी कैपिटल में कंपनियां अपने कॉमन स्टॉक या preferred शेयर बेचकर पैसे जुटाती हैं जिसमें उन्हें शेयर होल्डर को कंपनी में हिस्सेदारी देनी पड़ती है।
इक्विटी कैपिटल के नेगेटिव या पॉजिटिव होने का क्या मतलब है?
अगर कंपनी की बैलेंस शीट में इक्विटी कैपिटल पॉजिटिव है तो इसका मतलब है कि कंपनी के पास एसेट उसकी लायबिलिटी से ज्यादा है लेकिन अगर इक्विटी कैपिटल नेगेटिव है तो कंपनी की लायबिलिटी उसके एसेट से ज्यादा होती है।
इक्विटी कैपिटल का उपयोग कहां किया जाता है?
कंपनी इस कैपिटल का उपयोग करके अपने बिजनेस को एक्सपेंड करती है। नई-नई इनोवेशंस और एक्सपेंशंस करती है और प्रॉफिट जनरेट करती है जिससे स्टॉक का प्राइस बढ़ने लगता है और शेयर होल्डर को फायदा होता है।
इक्विटी कैपिटल को कैसे कैलकुलेट कर सकते हैं?
इक्विटी कैपिटल को कैलकुलेट करने का फार्मूला है:
इक्विटी शेयर का प्राइस × इक्विटी शेयर की संख्या
कंपनियां इक्विटी कैपिटल को किन-किन तरीकों से इकट्ठा करती हैं?
कंपनी इन 5 तरीकों से इक्विटी पूंजी जुटाती है?
1.सेल्फ फंडिंग
2. दोस्त और रिश्तेदारों के द्वारा
3.प्राइवेट इन्वेस्टर्स के द्वारा
4.वेंचर कैपिटलिस्ट
5.शेयर मार्केट पर लिस्ट करके।
मैं आशा करता हूं कि आपको यह पोस्ट (इक्विटी कैपिटल क्या है – What is equity capital in hindi) उपयोगी लगी होगी।
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