Trading Psychology for beginners in hindi: शेयर बाजार में ट्रेडिंग साइकोलॉजी किसी ट्रेडर के माइंडसेट और इमोशंस को दर्शाती है। साथ ही यह आपके ट्रेड लेने यानी buy या sell के डिसीजंस को हर दिन प्रभावित करती है।
क्या आप भी ट्रेडिंग में प्रॉफिट से ज्यादा लॉस करते हैं और क्या आप भी गलत ट्रेड में बने रहते हैं जबकि सही ट्रेड से जल्दी बाहर निकल जाते हैं… अगर हां तो यह पोस्ट आपको जरूर पढ़नी चाहिए.
आपको बता दें कि ऐसा सिर्फ आपके साथ ही नहीं बल्कि शेयर बाजार के 99% ट्रेडर्स के साथ होता है. तो अब आपके मन में सवाल आएगा कि आखिर क्यों?
तो इसका कारण है ‘आपकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी का ठीक ना होना’
दोस्तों अगर आप एक सफल ट्रेडर बनना चाहते हैं तो आपको अपनी ट्रेडिंग साइकोलॉजी को जानना बहुत जरूरी है क्योंकि उसी का इस्तेमाल करके आप शेयर मार्केट में एक प्रॉफिटेबल ट्रेडर बनने की जर्नी पर आगे बढ़ सकते हैं।
तो चलिए सबसे पहले जानते हैं कि आखिर–
ट्रेडिंग साइकोलॉजी क्या होती है?
ट्रेडिंग साइकोलॉजी एक ट्रेडर के इमोशंस, behaviour और माइंडसेट को बताती है जो उसके trading decisions पर बहुत गहरा असर डालते हैं। इसके अंतर्गत लालच, डर, अनुशासन, धैर्य और कॉन्फिडेंस आदि फैक्टर आते हैं जो आपके ट्रेडिंग परफॉर्मेंस को प्रभावित करते हैं।
इसीलिए आपको Trading psychology को समझना और कंट्रोल करना ट्रेडिंग में सफलता के लिए बहुत जरूरी है।
ट्रेडिंग साइकोलॉजी का उदाहरण (Example of trading psychology in hindi)
मान लीजिए एक ट्रेडर है जो किसी ABC कंपनी के शेयर को खरीद लेता है क्योंकि उसने अच्छी तरह से फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस की है और उसका analysis यह सुझाव दे रहा है कि उस शेयर का price बढ़ने वाला है। जब वह शेयर खरीदता है तो उसके कुछ समय बाद बाजार में अचानक अस्थिरता आ जाती है और शेयर का प्राइस गिरने लगता है।
अब इस सिचुएशन में यह ट्रेडर दो तरीके से रिएक्ट कर सकता है–
1. डर और घबराहट: शेयर नीचे जाने पर जैसे ही उसे अपने पोर्टफोलियो में थोड़ा बहुत लॉस दिखता है तो उसे डर लगने लगता है और अपने ऊपर डाउट हो जाता है कि कहीं उसने गलत शेयर को तो नहीं खरीद लिया है और इसी डर के चलते वह थोड़ी ही देर में उस स्टॉक में loss बुक करके बाहर निकल आता है।
अब थोड़ी देर बाद वह देखता है कि उसी शेयर में ऊपर की साइड एक बहुत बड़ा move आ चुका है और अब वह शेर लगातार ऊपर ही जा रहा है क्योंकि उसमें उसके चार्ट पर लगातार हरी बुलिश कैंडलस्टिक बन रही है तो वह दोबारा उसे शेयर में एंट्री ले लेता है
लेकिन जैसे ही वह एंट्री लेता है उसके थोड़ी ही देर बाद में शेयर कुछ देर और ऊपर जाने के बाद अचानक गिरने लगता है और वह ट्रेड दोबारा लॉस में आकर उसे शेयर को बेच देता है।
और ऐसा 90% से ज्यादा ट्रेडर्स के साथ होता है. लेकिन अगर उसकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी ठीक है तो वह कुछ इस तरह से रिएक्ट करेगा;
2. धैर्य और अनुशासन: शेयर प्राइस नीचे जाने के बावजूद भी वह ट्रेडर उसे शेयर को नहीं बचेगा क्योंकि सबसे पहली बात उसने उसे शेयर पर पहले ही एनालिसिस की हुई है और दूसरी बात उसे पता है कि बाजार में अस्थिरता यानी उतार-चढ़ाव होना आम बात है.
इसीलिए उसने पहले से ही शेयर में एंट्री लेते वक्त अपने टारगेट और स्टॉपलॉस सेट कर दिए थे जिससे बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव से अब उसकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और वह अपने इमोशंस को कंट्रोल करके आसानी से ट्रेड कर सकता है।
तो यहां पर, दूसरा रिएक्शन एक सही ट्रेडिंग साइकोलॉजी का अच्छा उदाहरण है जहां ट्रेडर ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया और अपने प्लान को फॉलो किया, जबकी पहला रिएक्शन एक उदाहरण है ट्रेडिंग साइकोलॉजी की गड़बड़ का, जिसने ट्रेडर का निर्णय प्रभावित किया।
ट्रेडिंग साइकोलॉजी गड़बड़ होने से क्या होता है?
जब आपकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी ठीक नहीं होती है, तो आपके साथ इस प्रकार की चीज हो सकती हैं जैसे–
- Impulsive Trading: इंपल्सिव ट्रेड करने का मतलब है बिना सोचे समझे सिर्फ अपने इमोशंस के आधार पर किसी भी ट्रेड में घुस जाना. इससे आप कोई भी ट्रेडिंग प्लान फॉलो नहीं करते हैं और नुकसान करते चले जाते हैं।
- Overtrading: ट्रेडिंग साइकोलॉजी ठीक ना होने की वजह से आप अपनी रिस्क कैपेसिटी से ज्यादा अमाउंट में ट्रेडिंग करने लगते हैं और इससे कुछ ही दिनों में आपका बैंक अकाउंट खाली हो जाता है और आप डिप्रेशन की शिकार हो जाते हैं।
- डर या लालच: आपके trading decisons में डर (fear) और लालच (greed) का सबसे बड़ा हाथ होता है. ऐसा कितनी बार होता है जब आप किसी शेयर से loss लेकर exit कर लेते हैं और बाद में उसी शेयर का प्राइस काफी ऊपर चला जाता है। और ठीक इसका उल्टा जब आपको लगता है कि कोई स्टॉक ऊपर जाने वाला है और इस आशा में कई घंटे यह कई दिनों तक उस stock में पोजीशन बनाकर बैठे रहते हैं और अंत में आपको उसे शेयर से पहले से दोगुना या चार गुना नुकसान बुक करके निकलना पड़ता है।
- Discipline की कमी: अपनी साइकोलॉजी पर कंट्रोल न होने के कारण कई बार आप अपनी trading plan या strategy को फॉलो नहीं करते हैं क्योंकि आपको लगता है की मार्केट यहां से ऊपर या नीचे जा सकता है इसमें आपको कुछ दिन प्रॉफिट हो सकता है लेकिन अंत में आप एक loss making ट्रेडर ही बनोगे।
- इमोशनल स्ट्रेस: जैसा कि आपको पता है कि शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग में काफी उतार-चढ़ाव होता है खासकर इंट्राडे और ऑप्शन ट्रेडिंग में. चार्ट पर छोटी सी कैंडलस्टिक बनने से आपको अपने पोर्टफोलियो में तुरंत प्रॉफिट या लॉस देखने लगता है जिसके कारण आपके इमोशंस बहुत तेजी से ऊपर नीचे होते हैं और इस वजह से आपके दिमाग पर भी प्रेशर काफी ज्यादा बढ़ जाता है।
इन सभी कारणों के अलावा आपकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी सही ना होने से जब आप बड़ा लॉस करते हैं तो आपके कॉन्फिडेंस में भी कमी आती है और आप दैनिक रोजमर्रा की जिंदगी में अपने आसपास के लोगों से भी अच्छे से पेश नहीं आते हैं और इसलिए ट्रेडिंग में करियर बनाने के लिए आपको अपनी trading psychology को improve करना बेहद जरूरी है।
Trading Psychology कैसे ठीक करें?
अपनी ट्रेडिंग साइकोलॉजी को improve करने के लिए आप नीचे दिए गए स्टेप्स फॉलो कर सकते हैं–
1. ट्रेडिंग प्लान बनाएं:
एक अच्छा ट्रेडिंग प्लान बनाने के लिए आपको पहले से लिखना चाहिए कि आज आप कितने ट्रेड करेंगे और मैक्सिमम कितना लॉस लेने को तैयार हैं. अगर आपके लॉस का अमाउंट टच हो जाता है तो आपको उस दिन ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए साथ ही आपको अपने ट्रेडिंग प्लान में कोई ना कोई स्ट्रेटजी जरूर शामिल करनी जोकि Risk मैनेजमेंट में आपकी मदद करेगी।
2. स्टॉप लॉस सेट करें
कुछ लोग ज्यादा प्रॉफिट के लालच में स्टॉप लॉस नहीं लगाते हैं या फिर कई लोग सोचते हैं कि यह उतना ज्यादा जरूरी नहीं है लेकिन अगर आप बड़े-बड़े ट्रेडर्स की माने तो ट्रेडिंग में Stop loss सबसे ज्यादा जरूरी है। क्योंकि अगर आप लॉस लेना सीख गए तो प्रॉफिट तो आप बना ही लोगे, और फिर वो दिन दूर नहीं जब आप एक प्रॉफिटेबल ट्रेडर भी बन जाओगे।
3. रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो
एक अच्छा ट्रेडर पर ही होता है जो पहले से ही अपना रिस्क रिवॉर्ड सेट करके चलता है। अगर आप प्रत्येक दो ट्रेड में से एक ट्रेड में loss करते हैं तो इसका मतलब है कि आपका रिस्क रिवॉर्ड रेशों 1:2 है और अगर आप 4 ट्रेड में से एक बार loss करते हैं तो आपका रिस्क रिवॉर्ड रेशों 1:4 है, आपको जितना हो सके इसे कम रखने की कोशिश करनी चाहिए और ऐसा लगातार प्रैक्टिस के द्वारा ही संभव है.
कहने का मतलब है कि अगर आप 10 में से 7 बार भी प्रॉफिट निकलना सीख गए तो आपकी ट्रेडिंग साइकोलॉजी ठीक है और आप खुद को एक सफल ट्रेडर कह सकते हैं।
4. मेडिटेशन
ट्रेडिंग करने वाले हर एक व्यक्ति के लिए मेडिटेशन बहुत जरूरी है और जितने भी प्रोफेशनल ट्रेडर हैं वह इसे फॉलो करते हैं। यह आपके दिमाग को शांत रखता है जिससे आप ट्रेडिंग के दौरान impulsive decisions लेने से बच सकते हैं और अपने इमोशंस पर भी कंट्रोल करने में आपको मदद मिलती है।
उम्मीद करता हूं अब आप समझ गए होंगे कि ट्रेडिंग साइकोलॉजी क्या होती है और ट्रेडिंग साइकोलॉजी ठीक ना होने से क्या होता है और आप इसे कैसे इंप्रूव कर सकते हैं. अगर आपका इस टॉपिक से जुड़ा हुआ कोई भी सवाल है तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं.
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