शेयर बाजार में ऐसा अक्सर होता है कि लोग जब शेयर खरीदते हैं तो वो गिर जाता है, और जब शेयर बेचते हैं तो बढ़ जाता है। ये घटना एक psychological bias और बाजार की गतिशीलता यानी market dynamics दोनों के कारण होती है।
अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो इसके लिए नीचे दिए गए कारण जिम्मेदार होते हैं–
1. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychology Reasons)
अधिकतर लोगों के साथ ऐसा होने के कुछ साइकोलॉजिकल कारण है जैसे–
1. डर और लालच (Fear & Greed):
शेयर बाजार में लोग अक्सर डर और लालच के अधीन होते हैं। जब बाजार गिर रही होती है, तो लोग जल्दी से अपने शेयर बेच देते हैं (डर के कारण), और जब बाजार बढ़ रहा होता है, तब वो खरीदारी की सोच में देरी करते हैं (कहीं ज्यादा ना बढ़ जाए, इस लालच के कारण) ). और इस वजह से वो मार्केट के विपरीत react करते हैं।
2. भीड़ मानसिकता (Herd Mentality):
शेयर मार्केट में बहुत सारे लोग दूसरों को देख कर निर्णय लेते हैं। अगर सब खरीद रहे हैं, तो वो भी खरीद लेते हैं, और जब सब बेच रहे हैं, तो वो भी बेच देते हैं। मार्केट में पहले से ही ओवरबॉट या ओवरसोल्ड हो चुका होता है, और जब आप एक्शन लेते हैं, तब मार्केट रिवर्स करने लगता है।
Herd mentality यानी झुंड मानसिकता का एक सरल उदाहरण ये है–
मान लीजिए, ABC Limited का शेयर पिछले एक महीने में 20% बढ़ चुका है। आपके आस-पास के लोग, दोस्त, आपके परिवार के सदस्य सब इस शेयर को खरीद रहे हैं और बोल रहे हैं कि ये और बढ़ेगा।
आपने इस स्टॉक के बारे में रिसर्च नहीं की है, लेकिन सबको खरीदते देख आप भी buy करने का फैसला कर लेते हैं, यह सोच कर कि अगर सब लोग खरीद रहे हैं, तो ये अच्छा स्टॉक होगा।
लेकिन, थोड़ी ही देर बाद, बाजार में सुधार (correction) आता है और एबीसी लिमिटेड का शेयर 15% गिर जाता है। जो लोग पहले से स्टॉक में निवेश करते हैं, वो शायद फिर भी प्रॉफिट में होते हैं, लेकिन आप, जो झुंड मानसिकता के कारण बिना सोचे-समझे देर से एंट्री करते हैं, नुक्सान में चले जाते हैं।
ये उदाहरण दिखाता है कि झुंड की मानसिकता कभी-कभी आपको बिना सोचे-समझे जोखिम भरे फैसले लेने पर मजबूर कर देती है, जो नुक्सान का कारण बन सकती है।
3. Loss को एवरेज करना:
रिसर्च के अनुसार, लोगों को नुक्सान होने का डर लाभ यानी profit होने की खुशी से ज्यादा होता है। इसलिए, जब बाजार थोड़ा भी नीचे जाता है तो लोग नुक्सान से बचने के लिए शेयर बेच देते हैं।
उदाहरण: मान लीजिये, आपने 1000 Rs प्रति शेयर के प्राइस से XYZ कंपनी के 10 शेयर खरीदे. मतलब आपने कुल 10000 Rs निवेश करे। अब कुछ दिनों बाद, मार्केट गिर जाता है और XYZ कंपनी का शेयर प्राइस 800 Rs हो जाता है। आपका पोर्टफोलियो अब 8,000 Rs का हो गया है, यानी आपके पोर्टफोलियो में अब 2,000 Rs का नुक्सान हो रहा है।
अब ऐसे में लोग लॉस को एवरेज करने की कोशिश करते हैं
क्योंकि अब, आपको लगता है कि अगर ये शेयर और गिर गया तो और ज्यादा नुकसान होगा। इस डर से, आप बिना बाजार को रिकवर होने का समय दिए अपने शेयर 800 Rs प्रति शेयर पर बेच देते हैं, ताकि आप और ज्यादा नुक्सान से बच सकें। आप अपने 2000 Rs का नुकसान book कर लेते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि थोड़ा नुकसान सह लेना ज्यादा नुकसान सहने से बेहतर है।
लेकिन, मान लीजिए कि बाद में ये शेयर फिर से 1000 Rs या उससे ज्यादा पर आ जाता है। तो अगर आपने शेयर होल्ड किये होते तो आपका नुकसान ठीक हो सकता था। लेकिन नुकसान से बचने के लिए, आपने डर के मारे अपने शेयर जल्दी बेच दिए और संभावित रिकवरी का फ़ायदा नहीं उठाया।
ये उदाहरण दिखाता है कि loss averasion कैसे लोगों को अपने नुकसान को कम करने के चक्कर में गलत निर्णय लेने पर मजबूर कर सकता हूं।
तो यह थे कुछ साइकोलॉजिकल कारण, जो आपके ट्रेडिंग करने के तरीके को काफी प्रभावित करते हैं और आप जिस जगह प्रॉफिट बना सकते थे उस जगह लॉस कर लेते हैं.
2. मार्केट डायनामिक्स
मार्केट डायनामिक का मतलब होता है मार्केट के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होना जिसके चक्कर में अक्सर लोग गलत निर्णय लेकर नुकसान कर बैठते हैं इसको समझने के लिए कुछ पॉइंट है जैसे–
1. मार्केट सेंटीमेंट
मार्केट कभी-कभी ओवररिएक्ट करता है शॉर्ट-टर्म न्यूज़ या सेंटीमेंट के आधार पर. अगर आप अफवाहों के आधार पर शेयर्स खरीदते या बेचते हैं, तो हो सकता है कि बाजार पहले से ही उस जानकारी को price में शामिल कर चुका हो।
2. सही समय का चयन (Timing The Market)
शेयर बाजार की टाइमिंग करना बहुत मुश्किल होता है। जब आप सोचते हैं कि मार्केट अब और ऊपर जाएगा, तो वो अचानक रिवर्स हो सकता है, क्योंकि मार्केट में पहले से ही खरीदारी का दबाव यानी buying pressure कम हो चुका होता है।
उदाहरण के लिए– मान लीजिए, आपने एक XYZ कंपनी का शेयर 100 Rs पर खरीदा। आपने देखा कि ये शेयर पिछले एक महीने में लगातर बढ़ रहा था, इसलिए आपने सोचा ये और बढ़ेगा. पर, एक हफ्ते बाद कंपनी के तिमाही नतीजों की घोषणा होती है जो बाजार की उम्मीदों से कम होती है जिससे बाजार का सेंटीमेंट नेगेटिव हो जाता है, और शेयर 80 Rs पर आ जाता है। और तब आप डर के मारे शेयर बेच देते हैं।
अब, शेयर की कीमत पहले ही बहुत गिर चुकी है, और कुछ बड़े निवेशकों ने इस गिरावट का फायदा उठाकर शेयर खरीदना शुरू कर दिया है। अब आप देखते हैं कि धीरे-धीरे शेयर फिर से 100 Rs पर आ जाता है, लेकिन तब तक आप अपने शेयर बेच चुके होते हैं। मतलब आपका नुक्सान हो गया, और आपको लगता है कि मार्केट आपके खिलाफ है, जबकी ये सिर्फ मार्केट डायनामिक्स और आपकी साइकोलॉजी का असर था।
निष्कर्ष:
मेरा कहने का मतलब यह है कि शेयर बाजार में ऐसी स्थितियाँ अक्सर होती हैं। इसका समाधान ये है कि आप बाजार को थोड़ा बेहतर समझने की कोशिश करें, और भावनात्मक फैसले यानी emotional decisions लेने से बचें। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट और disciplined approach बाजार के psychological traps से बचने में मददगार हो सकते हैं।
निवेशक बाजार में अपने डर और लालच को कैसे कम कर सकते हैं?
बाज़ार में डर और लालच को कम करने का एक बेहतरीन उपाय है ” सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP)”
उदाहरण के लिए: मान लीजिए, आप हर महीने 5000 Rs का SIP म्यूचुअल फंड में करते हैं। एसआईपी का ये फ़ायदा है कि आप नियमित अंतराल पर निश्चित राशि (Fix amount) निवेश करते हैं, बिना बाज़ार के उथल-पुथल को देखें, लेकिन SIP करने से क्या होता है…
- डर कम होता है: क्योंकि आप हर महीने छोटी रकम का निवेश कर रहे हैं, बाजार गिरने पर भी आपको डर नहीं होता, क्योंकि आपको पता है कि आप कम कीमतों पर ज्यादा यूनिट खरीद रहे हैं।
- लालच कम होता है: आप निश्चित राशि ही निवेश करते हैं, तो बाजार बढ़ने पर भी आप अपना प्लान नहीं बदलते। ये आपको जरूरत से ज्यादा निवेश करने से रोकता है।
इस तरह, एसआईपी एक अनुशासित और सिस्टेमेटिक approch है जो डर और लालच को कम करने में मदद करता है, और आपको long term ग्रोथ के लिए बेहतर स्थिति में रखता है।
तो यह था आज का आर्टिकल. आशा करता हूं आपको कुछ ना कुछ जरूर सीखने को मिला होगा. शेयर बाजार के बारे में अधिक सीखने के लिए आप इस ब्लॉग के अन्य पोस्ट भी पढ़ सकते हैं जैसे–
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